bhagavad gita in hindi

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2

क्या निःस्वार्थ सेवा ही सच्चा कर्मयोग है? श्रीमद्भगवदगीता अध्याय 4 श्लोक 2

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 2 एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ॥ २॥ अर्थात […]

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 50

क्या समता ही कर्म-कुशलता है? गीता श्लोक 2/50 का महत्व

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 50 बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् || 50 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 48

कर्म करते हुए कैसे पाएं शांति और समता?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 48 योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 48

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 47

कर्मण्येवाधिकारस्ते: क्या फल की इच्छा छोड़ना ही मोक्ष है?

Bhagavad gita Chapter 2 Verse 47 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 47 || अर्थात भगवान अर्जुन

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 45

भगवद्गीता में विरक्त जीवन का महत्व क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 45 त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 45 || अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 42 43

क्या सुख की तलाश आत्मज्ञान से दूर कर देती है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 42 43 यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: |वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: || 42 ||कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 40

क्या थोड़ी सी समता भी जन्म-मरण से मुक्ति दे सकती है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 40 नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || 40 || अर्थात भगवान

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 39

भगवद गीता में ‘समबुद्धि’ का रहस्य क्या है?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 39 एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि || 39

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 35 36

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपमान से क्यों डराया?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 35 36 भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा: |येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् || 35

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 33 34

क्या अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक कष्टदायक है? गीता से जानें उत्तर

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 33 34 अथ चेतत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |तत: स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ||

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 32

क्यों भगवान ने युद्ध को स्वर्ग का द्वार कहा?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते

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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 31

स्वधर्म निभाना क्यों है जीवन का सबसे बडा कर्तव्य?

Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 31 स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 31 || अर्थात भगवान कहते

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