आज के व्यस्त जीवन में समता का अभ्यास कैसे करें?
Bhagavad gita Chapter 2 Verse 49 दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: || 49 || अर्थात भगवान कहते […]
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Bhagavad gita Chapter 2 Verse 49 दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: || 49 || अर्थात भगवान कहते […]
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Bhagavad gita Chapter 2 Verse 47 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 47 || अर्थात भगवान अर्जुन
कर्मण्येवाधिकारस्ते: क्या फल की इच्छा छोड़ना ही मोक्ष है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 45 त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 45 || अर्थात भगवान कहते
भगवद्गीता में विरक्त जीवन का महत्व क्या है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 42 43 यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: |वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: || 42 ||कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्
क्या सुख की तलाश आत्मज्ञान से दूर कर देती है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 40 नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || 40 || अर्थात भगवान
क्या थोड़ी सी समता भी जन्म-मरण से मुक्ति दे सकती है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 39 एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि || 39
भगवद गीता में ‘समबुद्धि’ का रहस्य क्या है? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 35 36 भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा: |येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् || 35
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपमान से क्यों डराया? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 33 34 अथ चेतत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |तत: स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ||
क्या अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक कष्टदायक है? गीता से जानें उत्तर Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 32 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥ ३२॥ अर्थात भगवान कहते
क्यों भगवान ने युद्ध को स्वर्ग का द्वार कहा? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 31 स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 31 || अर्थात भगवान कहते
स्वधर्म निभाना क्यों है जीवन का सबसे बडा कर्तव्य? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 30 देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि || 30 || अर्थात
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से शोक न करने को क्यों कहा? Read Post »
Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 29 आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: |आश्चर्यवच्चैनमन्य: शृ्णोतिश्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् || 29 || अर्थात
क्या आपने कभी अपने ‘स्वरूप’ को स्वयं जाना है? Read Post »